अक्षांश पृथ्वी पर निर्मित होने वाली ऐसी
काल्पनिक रेखाएं होती हैं जो क्षैतिज दिशा में अर्थात पृथ्वी की सतह के समानांतर
वृत्ताकार रूप में निर्मित होती हैं. ये
रेखाएं किसी स्थान के पृथ्वी के केंद्र से झुकाव को प्रदर्शित करती हैं. पृथ्वी की सतहों पर सबसे बड़ा अक्षांश पृथ्वी के मध्य में निर्मित होता है,
जिसे भू-मध्य रेखा अथवा विषुवत रेखा के नाम से
जाना जाता है. ये रेखा 0º (डिग्री) द्वारा प्रदर्शित की जाती है. इस रेखा के द्वारा
पृथ्वी दो बराबर भागों में बंट जाती है.
इसे ही गोलार्द्ध कहा जाता है. इस रेखा के
उत्तर में स्थित गोले के आधे भाग को (पृथ्वी के आधे भाग को)
उत्तरी गोलार्द्ध तथा इसके दक्षिण में स्थित पृथ्वी के भाग को
दक्षिण गोलार्द्ध के नाम से जाना जाता है
.
23½º (डिग्री) N (नॉर्थ) अक्षांश को कर्क रेखा तथा तथा 23½º (डिग्री) S (साउथ) अक्षांश को मकर रेखा कहते हैं. मकर रेखा सूर्य की लम्बवत् किरणों के
लिए सीमा रेखा होती हैं. इन दोनों रेखाओं के मध्य स्थित क्षेत्र को उष्ण कटिबंधिय
क्षेत्र या उपोष्ण कटिबंधिय क्षेत्र कहा जाता है.
66½º (डिग्री) N अक्षांश को आर्कटिक
वृत्त तथा 66½º (डिग्री)
S अक्षांश को अंटार्कटिक वृत्त कहते हैं. ये रेखाएं सूर्य की
तिरछी किरणों के लिए सीमा रेखाएं होती
हैं.
23½º से 66½º N एवं S अक्षांशों
के मध्य स्थित क्षेत्र को शीतोष्ण कटिबंधिय क्षेत्र कहते हैं. यहां पर वर्ष भर
सूर्य की तिरछी किरणें पड़ती हैं, जबकि उष्ण कटिबंधिय
क्षेत्र ऐसे क्षेत्रों को कहा जाता है जहां वर्ष में कम-से-कम एक बार सूर्य की
लम्बवत् किरणें पड़ती हैं. 90º अक्षांश को ध्रूव कहते
हैं. ये बिंदू के रूप में पाया जाता है.
90º N अक्षांश को उत्तरी ध्रूव तथा 90º S अक्षांश को दक्षिणी ध्रूव के नाम से जाना जाता
है. 66½º से 90º के N एवं S अक्षांशों के मध्य स्थित क्षेत्र को ध्रूवीय
क्षेत्र कहते हैं. यहां 6 महीने का दिन तथा 6 महीने की रात होती है.
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प्रति 1º (एक डिग्री) पर एक अक्षांश निर्मित होता है तथा विषुवत रेखा से ध्रुवीय
क्षेत्रों की ओर जाने पर अक्षांशी वृत्त का आकार छोटा होता जाता है जो अंततः
ध्रुवों पर बिन्दूओं में परिवर्तित हो जाता है.
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उत्तरी
गोलार्द्ध में 90º अक्षांश तथा दक्षिणी
गोलार्द्ध में 90º अक्षांश निर्मित होते हैं तथा विषुवत रेखा
सहित कुछ अक्षांशों की संख्या 181 (90+1+90) हो जाती
है.
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कुल अक्षांशी वृत्तों की
संख्या 179 होती है, क्योंकि ध्रुव
अक्षांशी वृत्तों में शामिल नहीं होता है.
(181-2=179)
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देशातंर
पृथ्वी पर निर्मित होने वाले काल्पनिक अर्द्धवृत्त हैं जो ऊपर दिशा में उत्तरी
ध्रुव को दक्षिणी ध्रुव से जोड़ते हैं. ये देशांतर सदैव अक्षांशों के लम्बवत्
निर्मित होते हैं.
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पृथ्वी
पर कुल देशांत्तरों की संख्यां 360º (180+1+179) हैं.
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0º (जीरो डिग्री) देशांतर U.K
के ग्रीन विच नामक स्थान से होकर जाता है, जिसे मानक देशांतर अथवा
प्रधान यामयोत्तर कहा जाता है.
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0º देशांतर से पूर्व दिशा की
ओर चलने पर 180º देशांतर तक स्थित क्षेत्रों को पूर्वी
गोलार्द्ध तथा 0º देशांतर से पश्चिम दिशा की ओर चलने पर 180º देशांतर तक स्थित क्षेत्रों को पश्चिम गोलार्द्ध के नाम से जाना जाता है.
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30º N (नॉर्थ) का विपरीत स्थान 30º S (साउथ) है.
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15º S (साउथ) का विपरीत स्थान 15º N (नॉर्थ) है अर्थात
·
ߺN का
विपरीत स्थान ߺS होगा.
·
ߺS
का विपरीत स्थान ߺN
होगा.
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40º E का विपरीत स्थान 140º W
होगा.
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110º W का विपरीत स्थान 70º E
होगा
·
90º E का विपरीत स्थान 90º W
होगा.
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इसी प्रकार प्रधान
यामयोत्तर (0º) का विपरीत स्थान 180º होता है. दूसरे शब्दों में 40º E देशांतर के साथ 140º W मिलकर, 110º W के साथ मिलकर 70º E, 90º E के साथ 90º W, प्रधान यामयोत्तर (0º) के
साथ 180º देशांतर मिलकर पूर्ण वृत्त का निर्माण करते हैं.
अर्थात,
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ߺE का
विपरीत स्थान (180º-ß)º W होगा.
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ߺW का
विपरीत स्थान (180-ß)º E होगा.
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यदि कोई स्थान 40ºS
140ºE में स्थित हो तो पृत्थी पर उसका विपरीत
स्थान 40ºN 40º W
होगा इसी प्रकार 90ºN 90ºW का विपरीत
स्थान 90ºS90ºE होगा.
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0º, 0º का विपरीत स्थान 0º, 180º होगा.
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किसी देश का मानक समय उस देश के मध्य देशांतर पर हुए समय पर
निर्भर होता है. अर्थात प्रति एक देश का एक मानक समय होता है. परंतु कुछ देश अपवाद स्वरूप हैं, जैसे
अविभाजित रूस में 11 समय थे जो विभाजन के बाद 8 समय रह गए हैं. इसी प्रकार कनाडा
में 6, यू.एस.ए में 6 तथा चीन में 2 समय हैं. वर्तमान समय में भारत में भी दो समय
जो होने की बात चल रही है.
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0º देशांतर पर हुए समय को ग्रीनविच माध्य समय (Greenwich Mean
Time-G.M.T) या ‘विश्व समय’ (UNIVERSAL TIME) या जूलू (ZULU TIME) समय के नाम से जाना जाता है.
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भारत का मानक समय 82½ºE
देशांतर से लिया गया है जो इलाहाबाद के नैनी तथा गोपीगंज के निकट से
होकर गुजरता है. भारत के समय को ‘भारत का मानक समय’
(INDIAN STANDARD TIME-I.S.T) कहा जाता है जो GMT समय से 5:30 घंटे आगे है.
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पृथ्वी अपनी अक्ष पर
पश्चिम से पूर्व (W से E) की ओर घर्णन गति कर रही है. जिसके कारण पश्चिम (W)
स्थानों की अपेक्षा पूर्व स्थित स्थानों में अधिक समय पाया जाता है. किसी स्थान से
पूर्व दिशा की ओर जाने पर प्रति 1º, 4 मिनट अथवा प्रति 15º, 1 घंटे की दर से समय वृद्धि करता है. इसी दर से पश्चिम दिशा की ओर समय
घटता जाता है.
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यदि किसी समय 1ºE
देशांतर पर 7:00 बजा हो तो 2ºE, 3ºE,
4ºE, 5ºE पर क्रमशः 7:04, 7:08, 7:12 तथा 7:16
मिनट हो रहे होंगे. इसी प्रकार 0º, 1ºW, 2ºW, 3ºW, 4ºW पर
क्रमशः 6:56, 6:52, 6:48, 6:44 तथा 6:40 मिनट हो रहा होगा.
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यदि किसी समय 15ºW देशांतर पर सुबह के 6:00 बजे हों तो 0º, 15ºE, 30ºE, 45ºE, 60ºE पर क्रमशः 7:00,
8:00, 9:00, 10:00 तथा 11:00 बज रहा होगा. इसी
प्रकार 30ºW, 45ºW, 60ºW, 75ºW पर क्रमशः 5:00, 4:00,
3:00 तथा 2:00 बज रहा होगा.
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अन्तर्राष्ट्रीय तिथि
रेखा पृथ्वी पर दो दिनों के विभाजन के लिए बनाई गई है जिसके पश्चिम में पूर्वी
गोलार्द्ध (E) तथा पूर्व में पश्चिमी गोलार्द्ध (W)
स्थित होता है. पूर्वी गोलार्द्ध में पश्चिम गोलार्द्ध की अपेशा एक
दिन अधिक होता है.
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अन्तर्राष्ट्रीय तिथि
रेखा 180º देशांतर के सहारे निर्मित हुई है जो
रूस, अलुशियन द्वीप, फिजी, टांगा तथा चैथम द्वीपों के कारण तीन स्थानों से हद गई है. ये रेखा 8
स्थानों से विचलित भी हुई है.
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यदि कोई व्यक्ति I.D.L
(इंटरनेशनल डेट लाइन) को पश्चिम से पूर्व (W से
E) दिशा की ओर चलकर अर्थात पूर्वी गोलार्द्ध से पश्चिम
गोलार्द्ध की ओर I.D.L पार करता है तो उस व्यक्ति को एक दिन
का लाभ होता है. कहने का तात्पर्य ये है कि उस व्यक्ति को सप्ताह में 8 दिन
प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार यदि कोई व्यक्ति अंतर्राष्ट्रीय तिथि रेखा को पूर्व
से पश्चिम दिशा की ओर चल कर प्राप्त करता है अर्थात पश्चिमी गोलार्द्ध से पूर्वी
गोलार्द्ध की ओर आता है तो उसे एक दिन की हानि होती है. इस प्रकार उसे एक हफ्ते
में 6 दिन प्राप्त होते हैं.
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विषुवत रेखिए क्षेत्रों
में दो देशांतरों के मध्य अधिकतम दूरी होती है जो लगभग 111.2 किलोमीटर पाई जाती
है. विषुवत रेखिए क्षेत्रों से ध्रुवीय
क्षेत्रों की ओर जाने पर अर्थात अक्षांशों के बढ़ने से दो देशांतरों के मध्य दूरी
0 किलोमीरट हो जाती है. क्योंकि ध्रुवीय क्षेत्रों से ही सभी देशांतर निकलते हैं.
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किसी अक्षांश पर
देशांतरों के मध्य दूरी ज्ञात करने के लिए निम्मलिखित सूत्र का प्रयोग करते हैं. X÷111=90-Bº÷90, जहां B अक्षांश को प्रदर्शित करता है तथा X , Bº अक्षांश पर दो देशांतरों के मध्य दूरी प्रदर्शित करता है. उदाहरण:- 30º अक्षांश पर दो देशांतरों के मध्य दूरी निकालना
हो तो... X÷111=90-30º÷90=74 किलोमीटर होगा.
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दो अक्षांशों के मध्य दूरी सदैव समान होती है जो लगभग 111 किलोमीटर पाई
जाती है. दो अक्षांशों के मध्य स्थित क्षेत्र को जोन तथा दो देशांतरों के मध्य
घटती-बढ़ती दूरी तथा क्षेत्र को गोरे नाम से जाना जाता है.