क्लोन (Clone in Hindi)
यदि दो अलग-अलग कोशिकाओं की जींस रचना परस्पर बिल्कुल समान हो तो इनके
गुणों में भी समानता होती है. अतः ये कोशिकाएं आपस में क्लोन कहलाती हैं. इसी
प्रकार दो अलग-अलग जीवों की जींस रचना समान होने पर इन्हें भी परस्पर क्लोन कहा
जाता है. क्लोन विकसित करने की तकनीक क्लोनिंग कहलाती है.
Question:-
किसी पौधे का क्लोन विकसित करने के लिए उसी पौधे के किस भाग से
कोशिका लेनी पड़ेगा-
(A)- भ्रूण (Embryo)
(B)- भ्रूण
पोष
(endosperm)
(C)- बीज
(D) इनमें
से कोई नहीं.
ANSWER-(D)
स्पष्टीकरणः-
Ø उपरोक्त
प्रश्न में सभी अवस्थायें युग्मक कोशिकाओं के निषेचन के फलस्वरूप उत्पन्न होती
हैं. अतः क्रासिंग ओवर के कारण उनके जींस में बदलाव आ जाता है. अतः किसी पौधे का
क्लोन विकसित करने के लिए उसके कायिक भागों या सोमेटिक भाग जैसे-जड़, तना, इत्यादि
से कोशिका लेनी पड़ेगी.
Ø डॉली
भेड़ के क्लोनिंग प्रकरण में (डॉली नाम जर्मन गायिका का है) वैज्ञानिक द्वारा इसके
माता भेड़ से थन कोशिका (कायिक या Somatic) तथा दूसरी अंडाणु कोशिका
(युग्मक) ली गई, परन्तु अंडाणु कोशिका के जींस को थन कोशिका के जींस से
प्रतिस्थापित कर दिया गया.
Question:-
निम्नलिखित में किसे परस्पर क्लोन माना जा सकता हैः-
(A) भातृ जुड़वा
(B) समरूप
जुड़वा
(C) स्यामीज
जुड़वा
(D) इनमें
से कोई नहीं.
ANSWER-(D)
स्पष्टीकरणः-
Ø भातृ-जुड़वा
एक ही समय पर निर्मित दो अलग-अलग जाइगोट से विकसित होते हैं, अतः इनके जींस में
भिन्नता आ जाती है.
Ø समरूप
जुड़वा एक ही जाइगोट के विभाजन से व्युत्पन्न होते हैं, अतः इनके जींस में समानता
होती है.
Ø समरूप
जुड़वा के अंतर्गत परस्पर जुड़े हुए संताने स्यामीज जुड़वा कहलाती है.
Ø मनुष्य
में प्राकृतिक निषेचन फैलिपियोन नलिका के समीपस्थ भागों में होता है. इसी भाग में
प्रारंभिक भ्रूणीय विकास शुरू हो जाता है, जबकि अंतिम भ्रूणीय विकास गर्भाशय में
होता है, जबकि परखनखी शिशु या Test Tube Baby में निषेचन शरीर के बाहर (प्रायः
परखनली में) होता है, जबकि भ्रूणीय विकास शरीर के अंदर होता है.
v आजकल
कृत्रिम निषेचन की अनेक विधियां बनायी जाती है. जैसे-
1-G.I.F.T (Gamete Intra Fallopian
Tramps)
इसमें युग्मक कोशिकाओं को
फैलोपियन नलिका में स्थान्तरित किया जाता है.
2-Z.I.F.T (Zaigot Intra Fallopian Transer)
इसमें बाहर से निर्मित
जाइगोट, सीधे फैलोपियन नलिका में स्थान्तरित किया जाता है.
3-I.C.S.I (Intra
Cytoplasmic Sperm Injection)-
इसमें शुक्राणु कोशिका
सीरिन्ज में लेकर अंडाणु कोशिका में ‘कोषा द्रव्य’ में
सीधे अंतरविष्ट करा दिया जाता है.
Question:-
किसी भी प्राणी में माइट्रोकांड्रिया के जिन्स वित्पुन्न होते हैः-
(A) पिता से
(B) माता से
(C) दोनों
से
(D) किसी से
नहीं.
ANSWER-(D)
स्पष्टीकरणः-
चूंकि निषेचन प्रक्रिया में अंडाणु कोशिका पूर्णरूपेण भाग
लेती है, जबकि शुक्राणु कोशिका का केवल केंद्रक युक्त सिर भाग ही निषेचन में सफल
हो पाता है. अतः माइट्रोकांड्रिया शुक्राणु के मध्य भाग में स्थित होने के कारण यह
निषेचन से बाहर रह जाती है.
स्टेम सेल (Stem Cell)
मनुष्य में शुक्राणु तथा अंडाणु के निषेचन से एक कोशिकीय जाइगोट की रचना
बनती है जो भ्रूणीय विकास (विदलन प्रक्रिया) के माध्यम से क्रमशः मारुला,
ब्लास्टुला (ब्लास्टोसिस्ट) तथा गैस्टुला की अवस्थाएं विकसित करता है. भ्रूण के
प्रारंभिक दशा में इसकी कुछ मौलिक कोशिकाएं भिन्न अंगों को विकसित करने के लिए
विशिष्टिकृत हो जाती हैं जो स्टेम कोशिकाएं कहलाती हैं. मनुष्य में ये कोशिकाएं
ब्लास्टोसिस अवस्था से प्राप्त हो सकती हैं. इन स्टेम कोशिकाओं में विभाजित एवं
पुनरूद्धभवन के द्वारा ये प्रयोगशाला में विशिष्ट अंगों को विकसित करने में समर्थ
हो जाती हैं. स्टेम कोशिकाओं की सहायता से कैंसरग्रस्त अंगों का जैव रासायनिक
नियंत्रण ‘एटोप्टॉसिस’ कहलाता है.