जीन अभियांत्रिकी (अनुवांशिकी अभियांत्रिकी)
जब किसी जीव के जीन में कृत्रिम परिवर्तन कर उसी के अनुरूप उसके लक्षण
में परिवर्तन किया जाता है तो यह प्रयोगशाला तकनीक जीन अभियांत्रिकी कहलाती है. इस
तकनीकी में D.N.A या जीन को काटने के
लिए ‘रेस्ट्रिक्शन’ एन्जाइम तथा जीन को
जोड़ने के लिए लाइगोज एन्जाइम प्रयुक्त किये जाते हैं.
Question:-
आज-कल मधुमेह रोगियों के लिए इन्सुलिन का इंजेक्शन प्राप्त
किया जाता है-
(A)
गाय से
(B) चूहा से
(C) सूअर से
(D)
बैक्टीरिया से
ANSWER-बैक्टीरिया
से
Important Fact for EXAM:-
इंसुलिन का उपरोक्त उत्पादन ट्रांसजेनिक तकनीकी की सहायता से
‘कोलीफार्म
बैक्टीरिया’
द्वारा किया जाता है. इस व्यापारिक इंसुलिन को ह्यूमुलिन (Humulin) की
संज्ञा दी गई है. इसी प्रकार आजकल ट्रांसजेनिक तकनीकी की सहायता से-
v ट्रांसजनिक
पशु व फसलों का विकास किया जाता है.
v फसलों
को कीटरोधी (उदाहरण-बी.टी कॉटन) तथा प्रतिकूल वातावरण रोधी बनाया जाता है.
v खाद्य-टीका
का उत्पादन किया जाता है.
v अमेरिकी
वैज्ञानिकों द्वारा विकसित किए गए ट्रांसजेनिक बैक्टिरिया Bugs तथा Super Bugs क्रमशः
प्लास्टिक पेट्रोलियम जैसे रसायनों को विघटित करने में समर्थ होते हैं.
v जैव
विघटनशील प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है जिसे बायोपोल की संज्ञा दी गई है.
v मकड़ियों
द्वारा जाले के निर्माण में श्रावित पदार्थ को ट्रांसजेनिक तकनीक से अतिकठोरता
प्रदान करने का परीक्षण किया गया है जिसे बायोस्टील की संज्ञा दी गई है.
v जैव
ऊर्वरक या बायो फर्टिलाइजर, जैव पीड़कनाशी, जैव कीटकनाशी इत्यादि का उत्पादन किया
जाता है.
जैव उर्वरक (Bio Fertilizer)
जीव कोशिकाओं से प्राप्त ऐसे जैव रसायन जो
भूमि की उर्ववरता को बढ़वा देते हैं जैव उर्वरक कहलाते हैं. ये उर्ववरक अपेक्षाकृत
सस्ते तथा तीव्र होते हैं और यह पर्यावरण में प्रदूषण पैदा नहीं करते हैं. जैसे-
Ø अनेक प्रकार के
बैक्टिरिया-नाइट्रोसोमोनस, एजोटो बैक्टर, नाइट्रोबेक्टर, राइजोबियम (दलहनी फसलों
की जड़ों में)
Ø थियोबेसीलम की कुछ
प्रजातियां (सल्फेटी उर्वरक)
Ø क्लास्ट्रीयिम की
कुछ प्रजातियां तथा अन्य
Ø नाइट्रिकारी
बैक्टिरिया.
ü थियोबेसीलस
डिनाइट्रीफिकेंस मृदा की नाइट्राइट एवं नाइट्रेट को स्वतंत्र नाइट्रोजन में मुक्त
कर भूमि की उर्वरता को कम करता है.
ü नील----हरित
शैवाल---नोस्टोक और एनाबिना
ü माइक्रोराइजल कवक
(फास्फेटी उर्वरक)
ü एजोला नामक ‘फर्न’
ü अल्फा-अल्फा, नीम,
सनई
जैव-पीड़क नाशीः-
ऐसे जैव रसायन जो खर-पतवार या अपतृण (Weeds) तथा
कीटों को नष्ट करते हैं जैव-पीड़कनाशी कहलाते हैं. इसके अंतर्गतः-
1-जैव-अपतृणनाशीः-
ऐसे जैव-पीड़कनाशी जो फसलों के लिए हानिकारक खर-पतवार को
नष्ट करते हैं जैव-अपतृणनाशी कहलाते हैं. उदाहरण-कवकों (Fungi) से
प्राप्त किये गये कोलेगो, वेल्गो, लुबोआ-लुबोआ, डिवाइन ABC-5003, इत्यादि
प्रमुख है.
2-जैव-कीटनाशी-
ऐसे जैव पीड़कनाशी जो मनुष्य तथा फसलें दोनों के लिए
हानिकारक कीटों को नष्ट करती है जैव कीटनाशी कहलाती है. जैसे-एजैडिरैचिटिन (नीम के
मार्गोसीन रसायन से), पाइरेथ्रिन, सिनेरिन, थुरियोसाइट्स, इत्यादि.
Important Fact for EXAM:-
थुरियोसाइट्सः-
थुरियोसाइट्स नामक जैव कीटनाशी, Bacillus Thuringia sis नामक
बैक्टिरिया के
B.T जीन के नियंत्रण में संश्लेणित होता है. अमेरिकी कंपनी मोनेसेंटो
द्वारा इस B.T जीन
को टर्मिनेटर जीन तकनीकी के अंतर्गत कपास की ऐसी फसल में अंतर्विष्ट कराया गया है
जो कीटरोधी होने के कारण अधिक पैदावार देने में सफल हुई है, परंतु इस फसल से
उत्पन्न बीजों में अगली पीढ़ि के लिए सफल ढंग से अंकुरण की क्षमता समाप्त हो गई.
अर्थात ये बीज यदि अंकुरित हो भी सकते हैं, परंतु इसमें पुष्प, फल, बीज इत्यादि का
विकास नहीं होगा. आजकल यह तकनीकी अन्य फसलों में भी अपनायी जाती है. वर्मिनेटर जीन
तकनीकी टर्मिनेटर जीन तकनीकी के समान है, परंतु वर्मिनेटर बीजों में अगली एक पीढ़ि
के लिए अंकुरण की क्षमता पायी जाती है.
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ReplyDelete[8/1, 5:59 am] *भारती जोशी: your post is very useful and informative. thanks.. seva sindhu
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