सरकारी नौकरी नहीं तो आगे क्या? ये एक ऐसा सवाल है जो अक्सर हर उस छात्र के मन में होता है जो सरकारी नौकरी की तैयारी कर रहा होता है। सरकारी नौकरी की तैयारी करनेवाले करीब 99 फीसदी छात्र इसी डर के शिकार होते हैं। चाहे वो आर्ट बैकग्राउंड के हो चाहे, साइंस, चाहे बीटेक हों या फिर MBA. जानते हैं ऐसा होता क्यों है? क्योंकि तैयारी के दौरान कोई भी छात्र इस कदर पढ़ाई में डूब जाता है कि उसे दूसरे रास्ते दिखते ही नहीं हैं। खासतौर से सिविल सर्विसेज जैसे- IAS, IPS, IRS, PCS जैसी नौकरी की तैयारी करनेवाले छात्र के लिए ये स्थिति और भी भयावह हो जाती है। क्योंकि असफल होने पर उन्हें आगे के सारे रास्ते बंद लगने लगते हैं। सबसे बड़ी बात है कि वो खुद को समाज में अकेला पाते हैं। अपने टूटे हुए सपनों के साथ उन्हें ऐसा लगता है कि दुनिया का हर शख्स बस उसी पर उंगली उठा रहा है। दुनिया की हर आंख बस उसे ही देख रही है। जानते हैं ऐसा होता क्यों है?
दरअसल, तैयारी के दौरान हर छात्र एक उम्मीद में जीता है। उसे लगता है कि नौकरी के साथ ही उसे मान-सम्मान और रुतबा मिलेगा। पैसा आएगा। कई-कई बार तो तैयारी के दौरान अपने अफसर तक मान लेते हैं। उसी तरह रहना। उसी तरह खाना। उसी तरह दोस्तों से मिलना। ये स्थिति ज्यादातर इलाहाबाद, JNU, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ देखने को मिली है। वो जब पहले वर्ष में यूनिवर्सिटी में दाखिला लेते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्होंने सिविल सर्विसेज का आधा मैदान फहत कर लिया है। उन्हें लगता है कि बस वो सफलता से चंद कदमों की दूरी पर हैं। और जब कड़ी मेहनत के दम पर उन्हें सफलता नहीं मिलती है तो वो बुरी तरह से टूट जाते हैं। उन्हें लगता है की पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है। पूरी कायनात उसका बुरा चाहती है।
दोस्तों हमें समझना होगा कि सपने टूटने के लिए ही होते हैं। हर सपना पूरा नहीं होता है। वैसे भी सिविल सर्विसेज का हर सफल छात्र ये मानता है कि सलेक्शन 60 फीसदी मेहनत और 40 फीसदी किस्मत का खेल है। यानी सिर्फ मेहनत से काम नहीं चलता यहां लक फैक्टर भी चलता है। तो क्या लक फैक्टर के चक्कर में हमें तैयारी ही नहीं करना चाहिए। क्या अगर हमारी किस्तम बार-बार दगा दे रही है तो क्या हमें तैयारी से मुंह मोड़ लेना चाहिए। नहीं। हरगिज नहीं। किस्मत भी हर इंसान की परीक्षा लेती है। और जब आपकी मेहनत किस्मत पर भारी पड़ जाती है तो वो आपके कदमों में सरेंडर कर लेती है। तो फिर हमें करना क्या चाहिए?
डिप्रेशन से बचने के उपाय?
दरअसल, तैयारी के दौरान हर छात्र एक उम्मीद में जीता है। उसे लगता है कि नौकरी के साथ ही उसे मान-सम्मान और रुतबा मिलेगा। पैसा आएगा। कई-कई बार तो तैयारी के दौरान अपने अफसर तक मान लेते हैं। उसी तरह रहना। उसी तरह खाना। उसी तरह दोस्तों से मिलना। ये स्थिति ज्यादातर इलाहाबाद, JNU, दिल्ली यूनिवर्सिटी, जैसी बड़ी यूनिवर्सिटी के छात्रों के साथ देखने को मिली है। वो जब पहले वर्ष में यूनिवर्सिटी में दाखिला लेते हैं तो उन्हें लगता है कि उन्होंने सिविल सर्विसेज का आधा मैदान फहत कर लिया है। उन्हें लगता है कि बस वो सफलता से चंद कदमों की दूरी पर हैं। और जब कड़ी मेहनत के दम पर उन्हें सफलता नहीं मिलती है तो वो बुरी तरह से टूट जाते हैं। उन्हें लगता है की पूरी दुनिया उनकी दुश्मन है। पूरी कायनात उसका बुरा चाहती है।
दोस्तों हमें समझना होगा कि सपने टूटने के लिए ही होते हैं। हर सपना पूरा नहीं होता है। वैसे भी सिविल सर्विसेज का हर सफल छात्र ये मानता है कि सलेक्शन 60 फीसदी मेहनत और 40 फीसदी किस्मत का खेल है। यानी सिर्फ मेहनत से काम नहीं चलता यहां लक फैक्टर भी चलता है। तो क्या लक फैक्टर के चक्कर में हमें तैयारी ही नहीं करना चाहिए। क्या अगर हमारी किस्तम बार-बार दगा दे रही है तो क्या हमें तैयारी से मुंह मोड़ लेना चाहिए। नहीं। हरगिज नहीं। किस्मत भी हर इंसान की परीक्षा लेती है। और जब आपकी मेहनत किस्मत पर भारी पड़ जाती है तो वो आपके कदमों में सरेंडर कर लेती है। तो फिर हमें करना क्या चाहिए?
डिप्रेशन से बचने के उपाय?
- डिप्रेशन से बचने के लिए सबसे पहले आपको ये भाव अपने मन में रखना चाहिए अगर सफल नहीं हुए तो दुनिया के दूसरे रास्ते बंद नहीं जाएंगे।
- हर बंद रास्ता ये इशारा करता है दूसरे और भी रास्ते हैं जो आपको आपकी मंजिल तक पहुंचा सकते हैं। बस उसे समझने की जरूरत है।
- सबसे पहले आप तैयारी के दौरान बेफिजूल के सपने देखना छोड़ दें। हमेशा फालतू के सपने डिप्रेशन का शिकार बनाते हैं। और इस डिप्रेशन की वजह से आप हमेशा परेशान रहते हैं जो आपकी तरक्की में बाधक बनता है।
- सपने देखना गलत नहीं है, लेकिन सपने को ही हकीकत मान लेना ब्लंडर है। क्योंकि हर सपना सच नहीं होता। और टूटे हुए मन से कोई खड़ा नहीं हो सकता है। अटल बिहारी वाजपेयी ने बात बखूबी कही है।
- दोस्तों एक बात मन में गांठ बांध लीजिए चहां चाह वहां राह इसलिए पहले लक्ष्य निर्धारित करो और फिर अर्जुन की तरह उस लक्ष्य के पीछे पड़ जाओ। आज नहीं कल। कल नहीं परसो। परसो नहीं तो कभी ना कभी आपको सफता जरूर मिलेगी। इसलिए डरो नहीं। घबराओ नहीं। हौसला रखो। ऊंची उड़ान के लिए लंबी छलांग लगाओ। क्योंकि कल तुम्हारा है। और कल, कल आज बन जाएगा।
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